मंगलवार, 8 नवंबर 2011

इटली वासी भी बति‍याते हैं हिंदी में


इटली वासी भी बति‍याते हैं हिंदी में
इटली की आलेसांद्रा कोंसोलारो से एक विशेष भेंट


महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालयवर्धा में विदेशी हिंदी शिक्षकों के लिए आयोजित अभिविन्‍यास (ओरिएंटेशनकार्यक्रम में सहभागिता करने के लिए इटली से आयीं आलेसांद्रा कोंसोलारो ने एक खास बातचीत में कहा कि इटली में हिंदी भाषा और साहित्य का शिक्षण परंपरा ज़्यादा पुराना नहीं है। मैं जिस यूरोप के देश से आयी हूँ वहाँ आज से ४० साल पहले लोग हिंदी के नाम से केवल इस रूप में परिचित थे कि यह भारत की अनेक भाषाओं में से एक है। पर मैं यह कहने में गर्व महसूस करती हूँ कि आज इसकी स्थिति बहुत बदल गई है। आज बहुत से लोग थोड़ी बहुत हिंदी से परिचित हैं। काफ़ी लोग ऐसे हैं जो अच्छी तरह से हिंदी में बातचीत कर लेते हैं या हिंदी की किताबें पढ़ सकते हैं। बीसवीं सदी में जियुसेप्पे तुच्ची द्वारा १९३३ स्थापित इसिआओ (इंस्‍टीट्यूट ऑफ इटेलियन मीडिया स्‍टडीज) में हिंदी भाषा का शिक्षण शुरु हुई, लेकिन विश्वविद्यालय के स्तर पर सातवें दशक में जब वेनिस में प्र. लक्ष्मण प्रसाद मिश्र हिंदी सिखाने लगे तब वह पहला युनिवार्सिटी पाठ्यक्रम में शामिल हुआ। नैपल्स में प्र. श्याम मनोहर पांडे उन दिनों हिंदी स्‍नातक स्तर पर पढ़ाते थे। १९७१ में प्र.स्तेफ़नो पियानो ने तुरिन में हिंदी की पढ़ाई शुरू की। आजकल रोम और मिलान विश्वविद्यालयों में भी हिंदी भाषा और साहित्य को सिखाया जाता है। वेनिस, तुरिन और रोम में पीएचडी स्तर पर हिंदी के प्रोग्राम चलते हैं जबकि मिलान और नैपल्स में स्‍नातक स्तर पर हिंदी की पढ़ाई होती है।


भारतीय संस्‍कृति है खास लगाव-  भारतीय संस्कृति की ओर इटली में जो रुचि है वह नयी नहीं है। १८५२ ई. में गास्पारे गोर्रेज़ियो ने तुरिन में संस्कृत सिखाने लगे थे। उन्होंने वाल्‍मीकी रामायण को १० पोथी में प्रकाशित किया और इसका पूरा अनुवाद इतालवी भाषा में किया। उस समय से आज तक यह परंपरा जारी है। इसलिए इटली में प्राचीन और मध्यकालीन भारतीय भाषाओं और साहित्यों के प्रति ज़्यादा रुचि होती है। जबकि आधुनिक भाषाओं और साहित्य की स्थिति संस्कृत, पाली, ब्रज भाषा आदि की तुलना में नीचे स्तर पर मानी जाती है। वहाँ के विद्यार्थी हिंदी क्यों सीखते हैं? के जवाब में कोंसोलारो कहती हैं कि हिंदी सिर्फ भारत की राजभाषा ही नहीं है अपितु भारत को जानने के लिए हिंदी ही एकमात्र दरवाजा है जिससे कि यहाँ की कला, संस्‍कृति से हम अवगत हो सकते हैं। इसलिए हमारी रूचि भारतीय साहित्‍य के काव्य, कविता, दर्शन, गीत, इन सबों पर है। लिखने में, पढ़ने में, उच्चारण में कोई खास कठिनई नहीं है इस भाषा में। आजकल तो हिंदीभाषी लोग पूरी दुनिया में रहते हैं, दक्षिण एशिया में ही नहीं, तो हिंदी मॉरीशस, नेपाल, न्‍यूज़ीलैण्ड, दक्षिण अफ़्रीका, संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रचलित है। यह ४० करोड़ से ज़्यादा लोगों की भाषा है। इतना ही नहीं पकिस्तान की राष्ट्रभाषा उर्दू, से हिंदी बहुत मिलती जुलती है, इसलिये हिंदी सीखना और भी प्रासंगिक व ज़्यादा उपयुक्त लगता है।


हिंदी सीखने के लिए फिल्‍मों का है महत्‍वपूर्ण योगदान- तुरिन विश्‍वविद्यालय की आलेसांद्रा कोंसोलारो ने बताया कि इटली में हिंदी शिक्षण में बॉलीवुड फिल्‍मों और जनसंचार माध्‍यमों का अप्रतीम योगदान है। उन्‍होंने कहा कि आज हिंदी भाषा विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण हो गयी है। फ़िल्म के क्षेत्र में आजकल यूरोप में भी लोगों को भारतीय फ़िल्मों पर शौक होता है, खासतौर पर बॉलीवूड फ़िल्मों का । हमारे विद्यार्थियों की रुचि भारतीय़ संगीत और नृत्य पर होती है। आज भारत में तो विज्ञान, व्यापार कर्मण्यता, सूचना प्रौद्योगिकी, डिजिटल माध्यम के क्षेत्र में निरंतर अग्रसर होता जा रहा है। यही कारण है कि इटली के कई व्यापारिक निगम हिंदी जानकार लोगों की तलाश में रहते हैं। उन्‍हें वे नौकरी देते हैं ताकि अपने व्‍यापारिक संबंध को और भी सुदृढ़ कर सकें।


गौरतलब है कि महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा विदेशों में हिंदी अध्‍यापन में आ रही दिक्‍कतों से रू-ब-रू होने तथा पाठ्यक्रम निर्माण में एक समन्‍वयक की भू‍मिका निभा रहा है। पिछले जनवरी माह में विदेशी हिंदी अध्‍यापकों के लिए आयोजित अभिविन्‍यास कार्यक्रम में करीब आधे दर्जन से अधिक देशों के अध्‍यापकों ने शिरकत की थी। इसी कड़ी में दस दिनों के अभिविन्‍यास कार्यक्रम में मॉरीशस, श्रीलंका, हंगरी, न्‍यूजीलैण्‍ड, रूस, बेल्जियम, चीन, जर्मनी, क्रोशिया से दस अध्‍यापक सहभागिता कर रहे हैं। कुलपति विभूति नारायण राय ने बताया कि हम विदेश में पढ़ाने वाले हिदी अध्‍यापकों के लिए वर्ष में दो बार अभिविन्‍यास कार्यक्रम चलाएँगे जिससे हम यह जान पायेंगे कि उन्‍हें हिंदी के शिक्षण में क्‍या-क्‍या चुनौतियाँ आ रही हैं।
                                                                                                                            -अमित कुमार विश्‍वास

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